Self-confidence बढाने के 7 तरीके
इस  बात  से  कोई  इनकार  नहीं  कर  सकता की  जीवन  में  सफलता  पाने  के  लिए  self-confidence एक  बेहद  important quality है . जीवन  में  किसी मुकाम  पर  पहुंच  चुके  हर  एक  व्यक्ति  में  आपको  ये quality दिख  जाएगी फिर  चाहे  वो  कोई  film-star हो  , कोई  cricketer, आपके  पड़ोस  का  कोई  व्यक्ति , या  आपको  पढ़ाने  वाला  शिक्षक  . आत्मविश्वास एक  ऐसा गुण है जो हर  किसी  में होता है , किसी  में  कम  तो किसी  में  ज्यादा . पर  ज़रुरत  इस बात की है  कि  अपने  present level of confidence को  बढ़ा  कर  एक  नए  और  बेहतर  level तक  ले  जाया  जाये 
1)  Dressing sense improve कीजिये :
आप  किस  तरह  से  dress-up होते  हैं  इसका  असर  आपके  confidence पर  पड़ता  है . ये  बता  दूँ  कि  यहाँ  मैं  अपने  जैसे आम लोगों  की  बात  कर  रहा  हूँ , Swami Vivekanand और  Mahatma Gandhi जैसे  महापुरुषों  का  इससे  कोई  लेना  देना  नहीं  है , और  यदि  आप  इस  category में  आते  हैं  तो  आपका  भी  .
दरअसल  अच्छा  दिखना  आपको  लोगों  को  face करने  का  confidenc देता  है  और  उसके  उलट  poorly dress up होने  पे  आप  बहुत conscious रहते  हैं .
मैंने  कहीं  एक  line पढ़ी  थी  , आप  कपड़ों  पे  जितना  खर्च  करते  हैं  उतना  ही  करें , लेकिन  जितनी  कपडे  खरीदते  हैं  उसके  आधे  ही खरीदें  आप भी इसे अपना सकते हैं.
2)  वो  करिए   जो  confident लोग  करते  हैं :
आपके  आस -पास  ऐसे  लोग  ज़रूर  दिखेंगे  जिन्हें  देखकर  आपको  लगता  होगा  कि  ये व्यक्ति  बहुत  confident है . आप  ऐसे  लोगों  को  ध्यान  से  देखिये  और  उनकी  कुछ  activities को  अपनी  life में  include करिए . For example:
·                  Front seat पर  बैठिये .
·                  Class में , seminars में , Questions पूछिए / Answers दीजिये.
·                  अपने चलने और बैठने के ढंग पर ध्यान दीजिये.
·                  दबी  हुई  आवाज़  में  मत  बोलिए .
·                  Eye contact कीजिये , नज़रे  मत  चुराइए .
3)  किसी  एक   चीज  में  अधिकतर  लोगों  से  बेहतर   बनिए :
हर  कोई  हर  field में  expert नहीं  ban सकता  है . लेकिन  वो  अपने  interest के  हिसाब  से  एक -दो  areas चुन  सकता  है . अगर  आप  किसी  एक  चीज  में  महारथ  हांसिल  कर  लेंगे  तो  वो  आपको  in-general confident बना देगा . बस  आपको  अपने  interest के  हिसाब  से  कोई  चीज  चुननी  होगी  और  उसमे  अपने  circle में  best बनना  होगा , आपका  circle आप पर depend करता  है , वो  आपका  school,college, आपकी  colony या  आपका  शहर  हो  सकता  है
आप  कोई  भी  field चुन  सकते  हैं  , वो कोई  art हो  सकती  है , music, dancing,etc कोई  खेल  हो  सकता  है , कोई  subject हो  सकता  है  या  कुछ  और जिसमे आपकी expertise  आपको  भीड़  से  अलग  कर  सके  और आपकी  एक  special जगह  बना  सके . ये  इतना  मुश्किल  नहीं  है , आप  already किसी  ना  किसी  चीज  में  बहुतों  से  बेहतर  होंगे , बस  थोडा  और  मेहनत  कर  के  उसमे  expert बन  जाइये , इसमें  थोडा  वक़्त   तो  लगेगा ,  लेकिन  जब  आप  ये  कर  लेंगे  तो  सभी  आपकी  respect करेंगे  और  आप  कहीं  अधिक  confident feel करेंगे .और  जो  व्यक्ति  किसी  क्षेत्र  में  special बन  जाता है  उसे  और  क्षेत्रों  में  कम   knowledge होने की चिंता  नहीं होती , आप  ही  सोचिये  क्या  कभी सचिन  तेंदुलकर इस  बात  से  परेशान  होते  होंगे  कि  उन्होंने  ज्यादा  पढाई  नहीं  की ….कभी  नहीं !
4)  अपने  achievements  को  याद  करिए 
आपकी  past achievements आपको  confident feel करने  में  help करेंगी . ये  छोटी -बड़ी  कोई  भी  achievements हो  सकती  हैं . For example: आप  कभी  class में  first आये  हों , किसी  subject में school top किया  हो , singing completion या  sports में  कोई  जीत  हांसिल  की हो ,  कोई  बड़ा  target achieve किया  हो , employee of the month रहे  हों . कोई  भी  ऐसी  चीज  जो  आपको  अच्छा  feel कराये .
आप  इन  achievements को dairy में  लिख  सकते  हैं , और  इन्हें  कभी  भी  देख  सकते  हैं ख़ास  तौर  पे  तब  जब  आप अपना confidence boost करना  चाहते  हैं .इससे  भी  अच्छा  तरीका  है  कि  आप  इन achievements  से related  कुछ  images अपने  दिमाग  में  बना  लें  और  उन्हें  जोड़कर  एक  छोटी  सी  movie बना  लें  और  समय  समय  पर  इस  अपने  दिमाग  में  play करते  रहे . Definitely ये  आपके  confidence को  boost करने  में मदद  करेगा .
5) Visualize करिए  कि  आप  confident हैं :
आपकी  प्रबल  सोच  हकीकतबनने  का  रास्ता  खोज  लेती  है , इसलिए  आप  हर  रोज़  खुद  को  एक   confident person के  रूप  में  सोचिये . आप  कोई  भी  कल्पना  कर  सकते  हैं , जैसे  कि  आप  किसी  stage पर  खड़े  होकर  हजारों  लोगों  के  सामने  कोई  भाषण  दे  रहे  हैं , या  किसी seminar hall  में कोई शानदार presentation दे  रहे  हैं , और  सभी  लोग  आपसे  काफी  प्रभावित  हैं , आपकी  हर  तरफ  तारीफ  हो  रही  है  और  लोग  तालियाँ  बजा  कर  आपका  अभिवादन  कर  रहे  हैं . Albert Einstein ने  भी  imagination को  knowledge से अधिक  powerful बताया  है ; और  आप  इस  power का  use कर  के  बड़े  से  बड़ा  काम  कर  सकते  हैं .
6) गलतियाँ   करने  से  मत  डरिये:
क्या  आप  ऐसे  किसी  व्यक्ति  को  जानते  हो  जिसने  कभी  गलती  ना  की  हो ? नहीं  जानते  होंगे , क्योंकि  गलतियाँ  करना  मनुष्य  का  स्वभाव  है , और  मैं  कहूँगा  कि  जन्मसिद्ध  अधिकार  भी .  आप  अपने  इस  अधिकार  का  प्रयोग  करिए . गलती  करना  गलत  नहीं  है ,उसे  दोहराना  गलत  है . जब  तक  आप  एक  ही  गलती  बार -बार  नहीं  दोहराते  तब  तक  दरअसल  आप  गलती  करते  ही  नहीं  आप  तो  एक  प्रयास  करते  हैं  और  इससे  होने  वाले  experience से  कुछ  ना  कुछ  सीखते  हैं .
दोस्तों  कई  बार  हमारे  अन्दर  वो  सब  कुछ  होता  है  जो  हमें  किसी काम  को  करने  के  लिए  होना  चाहिए , पर  फिर  भी  failure के डर से  हम  confidently उस  काम  को  नहीं  कर  पाते .  आप  गलतियों  के  डर  से  डरिये  मत , डरना  तो उन्हें चाहिए जिनमे इस भय के कारण  प्रयास  करने  की  भी  हिम्मत  ना  हो !! आप  जितने  भी  सफल  लोगों  का  इतिहास  उठा  कर  देख  लीजिये  उनकी  सफलता  की  चका-चौंध  में  बहुत  सारी  असफलताएं  भी  छुपी  होंगी .
Michel Jordan, जो  दुनिया  के  अब  तक  के  सर्वश्रेष्ठ basketball player माने   जाते  हैं; उनका  कहना  भी  है  कि  , “मैं अपनी जिंदगी में बार -बार असफल हुआ हूँ और इसीलिए मैं सफल होता हूँ.”
आप  कुछ   करने  से  हिचकिचाइए  मत  चाहे  वो  खड़े  हो  कर कोई सवाल करना हो , या  फिर  कई  लोगों  के  सामने  अपनी  बात   रखनी  हो आपकी  जरा  सी  हिम्मत  आपके  आत्मविश्वास  को  कई  गुना  बढ़ा  सकती  है . सचमुच डर के आगे जीत है!

7 ) जो  चीज  आपका आत्मविश्वास  घटाती  हो  उसे  बार-बार  कीजिये :
कुछ  लोग  किसी  ख़ास  वजह  से  confident नहीं  feel करते  हैं . जैसे  कि  कुछ  लोगों में  stage-fear होता  है  तो  कोई  opposite sex के  सामने  nervous हो  जाता  है . यदि  आप  भी  ऐसे  किसी  challenge को  face कर  रहे  हैं  तो  इसे beat करिए . और  beat करने  का  सबसे  अच्छा  तरीका  है  कि  जो  activity आपको  nervous करती  है  उसे  इतनी  बार  कीजिये  कि  वो  आप ताकत  बन  जाये . यकीन  जानिए  आपके  इस  प्रयास  को  भले  ही शुरू  में  कुछ  लोग  lightly लें  और  शायद  मज़ाक  भी  उडाएं  पर  जब  आप  लगातार अपने efforts  में लगे  रहेंगे  तो  वही  लोग  एक  दिन  आपके  लिए  खड़े  होकर  ताली  बजायेंगे .गाँधी जी की कही एक  line मुझे  हमेशा  से  बहुत  प्रेरित  करती  रही  है.पहले वो आप पर ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे, और तब आप जीत जायेंगे. तो  आप  भी  उन्हें  ignore करने  दीजिये , हंसने  दीजिये ,लड़ने  दीजिये ,पर  अंत  में आप  जीत जाइये . क्योंकि  आप  जीतने  के  लिए  ही  यहाँ  हैं , हारने  के  लिए  नहीं. 


Friends, ये  याद  रखिये  कि  आपका  confidence आपकी  education, आपकी financial condition या आपके looks पर नहीं depend करता और आपकी इज़ाज़त के बिना कोई भी आपको inferior नहीं feel करा सकता. आपका आत्म-विश्वास आपकी सफलता के लिए बेहद आवश्यक है,और आजआपका confidence चाहे जिस level हो, अपने efforts से आप उसे नयी ऊँचाइयों तक पहुंचा सकते 

  आपका व्यक्तित्व, आपकी सफलता 


 किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके चरित्र की विशेषताओं व व्यवहार के मेल से बनता है, जो उस के सभी कामो मे झलकता है। इस व्यवहार मे चेतन और अवचेतन दोनो प्रकार के व्यवहार शामिल हैं। हमारा व्यवहार पूरे जीवन मे कई तथ्यो के प्रभाववश समय-समय पर बदलता रहता है। हमारे जीने और काम करने के तरीके मे लगातार बदलाव आता रहता है । यद्यपि इन बदलावो के बावजूद व्यवहार की जो छाप पहले- पहल पडती है वह आसानी से मिट नही पाती।
हमारा व्यक्तित्व, हमारा अस्तित्व,  इसी जीवन का एक अंग है। हमारे विश्वास उन पत्तों की तरह है, जिनका जीव आकृति विज्ञान, संसाधन एकत्र करने व आत्म विचारों को सुधारते है। इन्ही से मिल्कर हमारा व्यक्तित्व बनता है। व्यक्तित्व को निखारने से व्यक्ति केवल स्वंय बेहतर प्रदर्शन करता है। एक अच्छे व्यक्तित्व मे नेतृत्व की सभी विशेषताएं होती है जो आज के समय मे बहुत ज़रुरी है। व्यक्तित्व से ही झलक मिलती है कि सामने वाले व्यक्ति मे नेतृत्व की क्षमता है कि नही? इसी  सीमा तक आकर व्यक्तित्व व नेतृत्व की क्षमताएं मिलकर किसी व्यक्ति को क्षेत्र विशेष मे सफल बनाती है। अपनी छिपी प्रतिभा को निखारने के लिए कुछ सुझाव दिए गए है लेकिन वे अंतिम सत्य नही है। आप अपनी इच्छाअनुसार इसमे कुछ भी घटा या बढा सकते हैं लेकिन एक वात तो निश्चित ही है, व्यक्तित्व विकास कोई एक दिन मे किया जाने वाला पाठय़क्रम नही है। इसमे  आपके पूरे जीवन के रहने और काम करने का तौर- तरीका भी शामिल है

7 Qualities Of Smart Person

‘You are a special enterprise on the part of God’ – Mildred Mann

1. Commitment

2. An Open Mind

3. Persistence

4. Flexibility

5. Faith

 6. Thankfulness

7. Passion

1.Commitment                                            Committedness: the trait of sincere and steadfast fixity of purpose.                                                   Commitment: the act of binding yourself, intellectually or emotionally, to a definite course of action.                                                               2.An Open Mind                                                         Openness: characterized by an attitude of ready accessibility about one's actions or purposes                                                      Receptiveness: willingness or readiness to receive - especially impressions or ideas  
3.Persistence                                                    Persistence: refusing to give up, especially when faced with opposition or difficulty; continuing firmly or steadily                                                     Persistence: the act of continually pursuing something in spite of obstacles                     4.Flexibility                                                         Flexibility: the quality of being adaptable                                                         Flexibility: a measure of the ability to respond to changes in demand                                            5.Faith                                                             Faith: acceptance of principles which are not necessarily demonstrable                                                            Faith: strong belief in something without proof or evidence                                                 6.Thankfulness                                                   Thankfulness: a virtue and a dynamic - activates the Law of Attraction                                                      Thankfulness: a positive emotion involving a feeling of indebtedness                                    7.Passion                                                               Passion: strong, enthusiastic devotion to a cause, ideal, or goal                                                             Passion: your heart's one true desire or the deepest desire of your heart 

आप अपने व्यक्तित्व को निखार सकते है

जो भी कार्य करें, उस मे श्रेठ प्रदर्शन करें । एक सफल व संपूर्ण व्यक्तित्व का सफलता से गहरा संबंध होता है। यह सफलता पाने के अवसरों को बढा सकता है।
हम इस संसार मे आद्धितीय  क्षमताओं के साथ आए है। हमारे जैसा कोई नही है। हमारे व्यवहार, आचरण और भाषा पर वर्षो से हमारे परिवार, स्कूल, मित्र, अध्यापकों व वातावरण की छाप होती है। आप बस इतना करे कि सहज व प्राकृतिक बने रहें। लोग दिखावटी चेहरों को आसानी से पहचान लेते हैं। हम सब के पास कोई न कोई प्राकृतिक हुनर है।
   आप व्यक्तित्व को निखारना चाहते है तो अपने भीतर छिपे उस प्रतिभा, हुनर को पहचान कर उभारें। हर कोई एक अच्छा गायक या वक्ता नही बन सकता। यदि विंस्टन चर्चिल ने एक प्रेरणास्पद नेता बनने की बजाए गायक बनने की कोशिश की होती तो शायद वह कभी उसमे सफल नही हो पाते। इसी तरह महात्मा गाँधी एक अच्छे व्यवसायी नही बन सकते थे।
   हम सब हालात के प्रति अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। किसी दूसरे की नकल करने की वजाए वही रहें, जो आप है हर कोई मिस्टर या मिस यूनिवर्स तो नही बन सकता लेकिन दूसरो के अनूभवो से सीखकर अपने में सुधार तो ला सकता है। जीवन मे थम कर बैठने के बजाए बेहतरी का कोई न कोई उपाय आज़माते रहना चाहिए ।
  व्यक्तित्व का उपलब्धियो व प्रदर्शन से संबंध होता है, इस दिशा मे पहला कदम यही होगा कि आप तय करें कि आप क्या बनना चाहते है और आप उस के लिए क्या करने जा रहे हैं। आपकी योजना व्यवहारिक व स्पष्ट होनी चाहिए । सफलता की सभी योजनाए कल्पना से ही आरंभ होती है।  योजना को हकीकत मे बदलने के लिए कल्पना शक्ति का प्रयोग करें। योजनाबद्ध कार्य, धैर्य, दृड संकल्प किसी भी सपने को साकार कर सकता है।

   टाइम पर करें पर्सनेलिटी डेवलपमेंट
 पर्सनेलिटी डेवलपमेंट के लिए युवा अपने स्तर पर कई कोशिशें करते हैं, परंतु ये कोशिशें वे तब करते हैं जब उन्हें जॉब का खयाल आता है या फिर जीडी पीआई के लिए उन्हें तैयारी करना हो। अगर वे अपने आपको थोड़ा पहले से तैयार करें तब परिणाम न केवल शानदार होंगे बल्कि उन्हें अपने पर्सनेलिटी को सँवारने के लिए अतिरिक्त मेहनत भी करना पड़ेगी।
   जॉब पाना है तब अच्छा व्यक्तित्व होना जरूरी है, यह बात प्रत्येक युवा को बताई जाती है और न भी बताई जाए तो वह अपने मित्रों के माध्यम से यह समझ ही लेता है कि नौकरी पाने से लेकर नौकरी को बनाए रखने के लिए अच्छे व्यक्तित्व का होना जरूरी है।
  युवा साथी अपने आप ही व्यक्तित्व विकास करने की पहल कर इस दिशा में आगे बढ़ते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा कि आपको व्यक्तित्व विकास की जरूरत है, पर कैसे और क्यों? प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है। किसी को अपने कम्युनिकेशन पर ध्यान देने की जरूरत होती है तो किसी को करंट अफेयर्स के मामले में अपडेट होने की जरूरत होती है।
 दरअसल व्यक्तित्व विकास कई बातों को लेकर बना है और यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है। बावजूद इसके व्यक्तित्व विकास को लेकर कुछ ऐसी बातें हैं, जो सामान्य व्यक्ति भी अपनाएँ तो फायदा निश्चित रूप से होगा।

1. आपको कई बार यह बोला गया होगा कि अपनी सोच सकारात्मक रखें और शायद सभी दूर यह कहने के बाद इस पर आपने कोई ध्यान नहीं दिया होगा, पर कृपया सकारात्मकता पर सकारात्मक तरीके से ध्यान दें निश्चित रूप से फायदा होगा।
2. मुस्कुराएँ और अपनी मुस्कुराहट को दूसरों तक पहुँचने दें । इससे आपके दोस्त भी बढ़ेंगे और मुस्कुराहट आपके व्यक्तित्व को अलग ही रंग देगी।
3. रोजाना अखबार जरूर पढ़ें, इससे दुनिया में और आपके आस-पास क्या हो रहा है, इस बात की जानकारी रहेगी।
4. खाना खाते समय टेबल मेनर्स का ध्यान रखें।
5. अपनी सेहत का ध्यान रखें,अच्छे से ड्रेसअप हों और स्वयं को ऑर्गनाइज्ड करने की कोशिश करें।
6.एक कागज पर अपनी खूबियों और कमियों को लिखें और फिर ध्यान दें कि आप अपनी कमियों को कैसे दूर कर सकते हैं।
7. कुछ समय अकेले भी गुजारें और स्वयं के बारे में चिंतन करें।
8. एक जैसी दिनचर्या न गुजारें, रोजाना कुछ नया करने की कोशिश करें और हो सके तो कुछ लिखना या संगीत सीखना आरंभ करें। सृजनात्मकता व्यक्तित्व को निखारती है। 

  आपका व्यक्तित्व और साक्षात्कार

रोजगार की तलाश में निकले शिक्षित युवाओं को जितनी मेहनत लिखित परीक्षा और उसकी तैयारी के संदर्भ में करनी पड़ती है, उससे कहीं ज्यादा सावधानी उन्हें साक्षात्कार यानी इंटरव्यू के दौरान बरतनी पड़ती है।
 प्रत्येक नियोक्ता, कंपनी अथवा उपक्रम यानी इंटरव्यू कमेटी यह जरूर देखती है कि संबंधित पद के लिए वह जिस अभ्यर्थी का चयन कर रही है वह उसके लिए कितना उपयुक्त है। उसका व्यक्तित्व कैसा है यानी देखने में कैसा है। उसकी भाषा शैली कैसी है वगैरह-वगैरह। इसलिए प्रत्येक अभ्यर्थी को अपने व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आपका व्यक्तित्व न सिर्फ दूसरों के सामने आपको प्रभावी बनाता है बल्कि आपकी सफलता भी सुनिश्चित करता है। इसके लिए आपको निम्न बिंदुओं पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
  अहम पूँजी हैं आत्मविश्वासः- आपके व्यक्तित्व पर आत्मविश्वास की स्पष्ट छाप होनी चाहिए। कहने का मतलब यह है कि आपकी प्रत्येक गतिविधि में आपका आत्मविश्वास झलकना चाहिए। आत्मविश्वास आपकी सबसे अहम पूँजी है। आपके चेहरे पर झलकने वाला आत्मविश्वास सामने वाले को यह जता देता है कि आप अपने लक्ष्य के प्रति कितने सजग और प्रयत्नशील हैं। अपने काम के प्रति आपकी लगन और समर्पण का पैमाना क्या है।

इंटरव्यू के समय नियोक्ता कंपनी या उपक्रम के प्रतिनिधि अभ्यर्थी के समूचे व्यक्तित्व का आकलन करते हैं। वे यह जानने-समझने की पूरी कोशिश करते हैं कि संबंधित पद के लिए जो भी अभ्यर्थी उनके सामने बैठा है, वह कार्य निष्पादन के वक्त आने वाली चुनौतियों का सामना करने के योग्य है अथवा नहीं।
चलने-बैठने के तरीका :- बहुधा लोग काबिल और अपने क्षेत्र में पारंगत तो होते हैं लेकिन उनके उठने, बैठने और चलने का तौर-तरीका कुछ चालू किस्म का होता है। करियर बनाने की दिशा में, प्रयासरत युवाओं के लिए यह बात बेहद नुकसानदेह है। कब बैठना और कैसे उठना है तथा बाहर आना है आदि बिंदु आपके लिए खासे महत्वपूर्ण हैं। इनका भलीभाँति ध्यान रखना चाहिए। चलने, बैठने और उठने के सभ्य तरीके आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाते हैं। इसलिए सारी बातों के साथ इस बिंदु पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।
दबा-दबा सा न हो बोलचाल का लहजाः- युवाओं में अकसर एक कमी यह पाई जाती है कि वे अपने विषय में पारंगत तो होते हैं उनके सामान्य ज्ञान का स्तर भी सुपर होता है लेकिन बोलचाल का उनका हलका और दबा-दबा सा लहजा उनकी सारी काबिलियत को धो देता है। बातचीत के दौरान आधी बात उनके मुँह में ही रह जाती है। हकलाहट की बीमारी ने होते हुए भी जवाब देते समय उनकी जुबान लड़खड़ाने लगती है और सारे किए धरे पर पानी फिर जाता है। इस स्थिति से बचना चाहिए।
अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा है तो आप स्वयं प्रश्न उत्तर बनाकर उनका अकेले में अथवा अपने मित्रों के साथ अभ्यास कर सकते हैं। इससे आपकी झिझक खत्म होगी और इंटरव्यू के दौरान आप अपनी बात सहज भाव से सबके सामने रख सकेंगे।
भाषा पर रखें पकड़ :- साक्षात्कारकर्ताओं के साथ बातचीत करते समय आप चाहे जिस भी भाषा का प्रयोग करें लेकिन इतना ध्यान रखें कि उस भाषा पर आपकी पूरी पकड़ होनी चाहिए। हिंदी हो या अंग्रेजी, भाषा पर आपकी पकड़ आपकी स्थिति मजबूत करती है। मिश्रित भाषा का प्रयोग करते समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि किस जगह किस भाषा या शब्द का प्रयोग उचित है।
इंटरव्यू हो या सामान्य जीवन की दैनिक बातचीत, अधकचरी भाषा का प्रयोग आपके व्यक्तित्व को कमजोर करता है, सामने वाला यह सोचने पर विवश हो जाता है कि आपको संबंधित भाषा का ज्ञान नहीं है, बस आप सिर्फ हाँके जा रहे हैं। बाद में यानी पीठ पीछे लोग ऐसे शख्स की खिल्ली उड़ाने से भी बाज नहीं आते। इसलिए जरूरी है कि हम या आप उसी भाषा का प्रयोग करें, जिसकी हमें या आपको पूरी जानकारी हो।
 व्यक्तित्व के निर्धारण में पहनावा है खास :- बतौर पोशाक आप क्या पहनना अधिक पसंद करते हैं, यह बिंदु आपके व्यक्तित्व के निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है। आमतौर पर इंटरव्यू के लिए जाते समय लोग कमीज, पतलून और टाई का प्रयोग करते हैं। सर्दियों में सूट को भी तरजीह दी जाती है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप टाई बांधे ही बल्कि सिर्फ कमीज-पतलून ही पहना जा सकता है।
कहने का आशय यह कि कभी-कभी कुछ युवा टाई में खुद को असहज महसूस करते हैं। इंटरव्यू में पहनावे की शर्त महज इतनी होती है कि वे ऑफिस वीयर हों। पिकनिक वाली पोशाक कतई इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए। सिर्फ कमीज-पतलून में आप खुद को परफेक्ट और सहज महसूस कर सकते हैं। इससे आप इंटरव्यू के समय भटकेंगे नहीं। आपकी पोशाक आपका ध्यान भंग नहीं कर सकेगी।

कम्युनिकेशन पर दें ध्यान



थैंक्यू... प्लीज... आई एम सॉरी... इनका प्रयोग अक्सर कम्युनिकेशन के दौरान होता है। कम्युनिकेशन अपने आप में काफी बड़ा, विस्तृत और आकर्षक विषय है। समाज में विभिन्न स्तरों पर संवाद की जरूरत और किस प्रकार का संवाद होना चाहिए, इस पर कई बातें निर्भर करती हैं। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में भी कम्युनिकेशन पर काफी ध्यान दिया जाता है।
 कम्युनिकेशन में सकारात्मकता आपको घर से लेकर आपके ऑफिस में सहायक सिद्ध होगी। घर पर अगर आप परिवार के किसी सदस्य के साथ बातचीत कर रहे हैं और उसमें कोई बात आपको अच्छी नहीं लगी तब आप तत्काल उस पर प्रतिक्रिया देते हैं और टोक देते हैं। खासतौर पर जब बात युवा साथी की हो तब उसे टोकना जरूरी भी है ताकि वह अपने कम्युनिकेशन में बदलाव लाए, पर यहां भी बात सकारात्मकता की लागू होती है। अगर आपने डांट कर अपनी बात मनाने के लिए कोई बात कही तब कुछ भी नहीं होने वाला और हो सकता है कि अगली बार आप संवाद स्थापित करने का मौका ही छोड़ दे।
  अगर बात कॉर्पोरेट वर्ल्ड की है तब कार्यालयों में यह देखा जाता है, अगर कोई कर्मचारी समय पर नहीं आता है तब छुट्टी से लेकर नोटिस देने जैसे कितने ही कार्य होते हैं। एक कंपनी में तो देरी से आने वाले को सभी स्टॉफ के सामने डांटने जैसी परंपरा ही थी, परंतु इससे क्या व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाया जा सकता है क्या? या फिर कम्युनिकेशन इसमें किस तरह का हो सकता है, इस बारे में विचार किया जाए।
  पॉजिटिव कम्युनिकेशन की बात की जाए तब कार्यालय में देरी से आने वाले कर्मचारी को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि चलिए आज कोई समस्या होगी बावजूद इसके आप थोड़ा ही देर से आए। आप कल और जल्दी आ सकते हैं। हो सकता है कि इससे कर्मचारी के मन पर थोड़ा असर पड़े और वह जल्दी आने के लिए प्रेरित हो, जबकि दूसरी ओर अगर आपने उसे डांटा है तब उसका नकारात्मक असर ही पड़ेगा। वह ऑफिस में जल्दी जरूरी आएगा, पर अपना आउटपुट जैसा चाहिए वैसा नहीं देगा।
  घर पर भी युवाओं या किशोरों से बातचीत के दौरान या सामान्य रूप से बातचीत के दौरान भी अगर आप किसी विवाद को समाप्त करना चाहते हैं तब बातचीत की शुरुआत जिन मुद्दों पर असहमति है उनसे न करके जिन बातों पर सहमति है, उससे करेंगे तब बात बनेगी जरूर। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में किसी भी उत्पाद या किसी अन्य कंपनी से डील करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाता है। दोनों साझा रूप से किन बातों पर सहमत हैं। एक बार हां की मुहर लग जाने के बाद अन्य बातें करने में आसानी हो जाती है।
  थैंक्यू... प्लीज... आई एम सॉरी का उपयोग कहां, कब और कितना करना यह भी जानना जरूरी है। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में भावनाओं की कद्र थोड़ी कम ही होती है और खासतौर पर सेल्स के क्षेत्र में कंपनियों को टारगेट पूर्ण होने से मतलब होता है । इस कारण सॉरी की बात ही न कहें, बल्कि तर्क के सहारे अपनी बात रखें।
 जब घर की बात हो तब यही सॉरी सबकुछ हो जाता है। माता-पिता के सामने अगर आपने गलत बात बोल दी है और आपको सही मायने में पछतावा हो रहा है तब एक सॉरी से काफी बात बन सकती है, पर ऐसा नहीं है कि आप बार-बार सॉरी कहते रहें और गलतियां करते रहें। दोस्ती यारी हो या फिर कार्यालय में आपके किसी के साथ दोस्ताना ताल्लुक हो। संबंधों में स्वच्छ और स्पष्ट संवाद जरूरी है और जब भी आपको लगे गाड़ी थोड़ी भी पटरी से उतर रही है तब स्वयं पहल कर संवाद स्थापित करने का प्रयत्न जरूर करें।

      इंट्रोडक्शन से डालें इंप्रेशन 

आपका परिचय ऐसा होना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति आपसे हाईली इंप्रेस हो जाए। कई मर्तबा लोग क्वालिफाइड, स्किल्ड और हार्डवर्किंग होने पर भी केवल इसलिए रिजेक्ट कर दिए जाते हैं क्योंकि उनका इंट्रो देने का तरीका सामने वाले को पसंद नहीं आता। कहा भी गया है, 'फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन'।
 अपना इंट्रोडक्शन देना भी एक आर्ट है। आप अपने आपको जिस तरीके से प्रेंजेंट करेंगे, आपकी इमेज भी वैसी ही बनेगी। अपने को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने के लिए आपको बोलचाल का प्रभावी तरीका आना चाहिए। अगर आप बातचीत के तरीके में थोड़ी कॉन्शस रहते हैं और डिसिप्लिन से काम लेते हैं तो आप खुद को एक्प्रेस करने के तरीके में वजन ला सकते हैं। इसके लिए आपको इन बातों को अमल में लाना होगा :
1. कोई अगर आपसे आपका परिचय पूछे तो उसे अपने बारे में संक्षिप्त व स्पष्ट रूप से उसकी नजरों में नजरें मिलाते हुए बताएँ।
2. जितना पूछा जाए उतना ही बताएँ। यदि कोई बात स्पष्ट करने के लिए किसी संदर्भ का जिक्र करना पड़े तो उसे संक्षिप्त में करें।
3. तेज बोलना, बिना रुके बोलना आपके प्रभाव को कम करेगा। इसलिए आप इससे बचें।
4. परिचय सिर्फ अपना ही दें, किसी को अनावश्यक रूप से अपने घर-परिवार के बारे में न बताएँ।
5. जिस विषय पर बात की जा रही हो, उसी संदर्भ में बात करें। अन्य विषयों को बातचीत में शामिल न करें।
6. बात करते समय बीच-बीच में उँगलियाँ न चटकाएँ, इससे बातचीत का क्रम टूटता है और आपकी उदासीनता झलकती है। सामने वाले को खीझ भी महसूस होने लगती है।
7. बातचीत करते समय जरूरत से ज्यादा मुस्कुराएँ नहीं।
8. बात के दोहराव से भी ऊब होती है। किसी बात को दो-तीन बार न बोलें। इससे आपकी अस्थिरता छलकती है।
9. सामने वाले के साथ बात करते-करते अलग ही ख्यालों में खो जाना सामने वाले का अपमान है। इस आदत से बचें।
10. ध्यान रखिए, बातचीत में आपके विचार ही नहीं, उच्चारण भी स्पष्ट हों।
11. आवाज में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव न हो। उतार-चढ़ाव का प्रदर्शन गायकों के लिए ही अच्छा होता है।
12. हाथों की मुद्रा बात करने के अंदाज को सपोर्ट करती हुई हो, न कि खलल पैदा करने वाली।
13. जब भी बात करें, तो दिल और दिमाग को कहीं और न भटकाए। अपनी बात ऊर्जा से लबरेज अंदाज में कहें। यथासंभव दूसरों की सहायता करें।

सफलता के लिए बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान दें

सक्सेस केवल अच्छी नॉलेज रखने या स्किल्स पाने में नहीं है। आप तब तक सक्सेस नहीं पा सकते जब तक आपका खुद को एक्सप्रेस करने का तरीका सही नहीं है।
 प्रोफेशनल लाइफ हो या पर्सनल लाइफ इंपॉर्टेंट यह नहीं है कि आप क्या कहते हैं, बल्कि यह ज्यादा इंपॉर्टेंट है कि आप उसे किस तरह कहते हैं? हमेशा मुस्कराते रहें। जो लोग अपने बारे में अच्छा सोचते हैं, उनकी बॉडी लैंग्वेज अक्सर बेहतर होती है।
 सार्वजनिक जीवन जीने वालों के लिए ही नहीं बल्किदफ्तर में काम करने वालों के लिए भी 'एटिट्यूड' बड़ी काम की चीज है। इसलिए जब भी आप किसी से बात करें तो बॉडी लैंग्वेज पर जरूर ध्यान दें।
कुछ खास बातें :
·      चाहे बॉस हो या कलीग हमेशा आई कॉन्टैक्ट रखकर बातें करें।
·      खुली हथेलियां गंभीरता और ग्राह्यता को दर्शाती हैं।
·      करीब रहकर बात करना यानी रुचि लेना और दूर होने का मतलब है बातचीत में ध्यान नहीं होना।
·      आराम मुद्रा का मतलब है कि आप संवाद के लिए तैयार हैं।
·      ऑफिस में हाथ बांधकर खड़ा नहीं होना चाहिए, यह विरोध का संकेत है।
·      हाथ हिलाकर बातचीत करने से समझा जाता है कि आप बड़ी रुचि से बातें कर रहे हैं।
·      मुंह के ऊपर या चेहरे पर हाथ रखना नेगेटिव बॉडी लैंग्वेज का हिस्सा है।
·      ऑफिस में कभी भी किसी भी स्तर के व्यक्ति से ऊंची आवाज और तेज स्पीड में बात नहीं करनी चाहिए। इससे आप अपनी पर्सनालिटी की सीरियसनेस खो देंगे।
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The First Principle in The Science of Getting Rich

THOUGHT is the only power which can produce tangible riches from the Formless Substance. The stuff from which all things are made is a substance which thinks, and a thought of form in this substance produces the form.
Original Substance moves according to its thoughts; every form and process you see in nature is the visible expression of a thought in Original Substance. As the Formless Stuff thinks of a form, it takes that form; as it thinks of a motion, it makes that motion. That is the way all things were created. We live in a thought world, which is part of a thought universe. The thought of a moving universe extended throughout Formless Substance, and the Thinking Stuff moving according to that thought, took the form of systems of planets, and maintains that form. Thinking Substance takes the form of its thought, and moves according to the thought. Holding the idea of a circling system of suns and worlds, it takes the form of these bodies, and moves them as it thinks. Thinking the form of a slow-growing oak tree, it moves accordingly, and produces the tree, though centuries may be required to do the work. In creating, the Formless seems to move according to the lines of motion it has established; the thought of an oak tree does not cause the instant formation of a full-grown tree, but it does start in motion the forces which will produce the tree, along established lines of growth.
Every thought of form, held in thinking Substance, causes the creation of the form, but always, or at least generally, along lines of growth and action already established.
The thought of a house of a certain construction, if it were impressed upon Formless Substance, might not cause the instant formation, of the house; but it would cause the turning of creative energies already working in trade and commerce into such channels as to result in the speedy building of the house. And if there were no existing channels through which the creative energy could work, then the house would be formed directly from primal substance, without waiting for the slow processes of the organic and inorganic world.
No thought of form can be impressed upon Original Substance without causing the creation of the form.
Man is a thinking center, and can originate thought. All the forms that man fashions with his hands must first exist in his thought; he cannot shape a thing until he has thought that thing.
And so far man has confined his efforts wholly to the work of his hands; he has applied manual labor to the world of forms, seeking to change or modify those already existing. He has never thought of trying to cause the creation of new forms by impressing his thoughts upon Formless Substance.
When man has a thought-form, he takes material from the forms of nature, and makes an image of the form which is in his mind. He has, so far, made little or no effort to co-operate with Formless Intelligence; to work "with the Father." He has not dreamed that he can "do what he seeth the Father doing." Man reshapes and modifies existing forms by manual labor; he has given no attention to the question whether he may not produce things from Formless Substance by communicating his thoughts to it. We propose to prove that he may do so; to prove that any man or woman may do so, and to show how. As our first step, we must lay down three fundamental propositions.
First, we assert that there is one original formless stuff, or substance, from which all things are made. All the seemingly many elements are but different presentations of one element; all the many forms found in organic and inorganic nature are but different shapes, made from the same stuff. And this stuff is thinking stuff; a thought held in it produces the form of the thought. Thought, in thinking substance, produces shapes. Man is a thinking center, capable of original thought; if man can communicate his thought to original thinking substance, he can cause the creation, or formation, of the thing he thinks about. To summarize this--
There is a thinking stuff from which all things are made, and which, in its original state, permeates, penetrates, and fills the interspaces of the universe.
A thought, in this substance, Produces the thing that is imaged by the thought.
Man can form things in his thought, and, by impressing his thought upon formless substance, can cause the thing he thinks about to be created.
It may be asked if I can prove these statements; and without going into details, I answer that I can do so, both by logic and experience.
Reasoning back from the phenomena of form and thought, I come to one original thinking substance; and reasoning forward from this thinking substance, I come to man's power to cause the formation of the thing he thinks about.
And by experiment, I find the reasoning true; and this is my strongest proof.
If one man who reads this book gets rich by doing what it tells him to do, that is evidence in support of my claim; but if every man who does what it tells him to do gets rich, that is positive proof until some one goes through the process and fails. The theory is true until the process fails; and this process will not fail, for every man who does exactly what this book tells him to do will get rich.
I have said that men get rich by doing things in a Certain Way; and in order to do so, men must become able to think in a certain way.
A man's way of doing things is the direct result of the way he thinks about things.
To do things in a way you want to do them, you will have to acquire the ability to think the way you want to think; this is the first step toward getting rich.
To think what you want to think is to think TRUTH, regardless of appearances.
Every man has the natural and inherent power to think what he wants to think, but it requires far more effort to do so than it does to think the thoughts which are suggested by appearances. To think according to appearance is easy; to think truth regardless of appearances is laborious, and requires the expenditure of more power than any other work man is called upon to perform.
There is no labor from which most people shrink as they do from that of sustained and consecutive thought; it is the hardest work in the world. This is especially true when truth is contrary to appearances. Every appearance in the visible world tends to produce a corresponding form in the mind which observes it; and this can only be prevented by holding the thought of the TRUTH.
To look upon the appearance of disease will produce the form of disease in your own mind, and ultimately in your body, unless you hold the thought of the truth, which is that there is no disease; it is only an appearance, and the reality is health.
To look upon the appearances of poverty will produce corresponding forms in your own mind, unless you hold to the truth that there is no poverty; there is only abundance.
To think health when surrounded by the appearances of disease, or to think riches when in the midst of appearances of poverty, requires power; but he who acquires this power becomes a MASTER MIND. He can conquer fate; he can have what he wants.
This power can only be acquired by getting hold of the basic fact which is behind all appearances; and that fact is that there is one Thinking Substance, from which and by which all things are made.
Then we must grasp the truth that every thought held in this substance becomes a form, and that man can so impress his thoughts upon it as to cause them to take form and become visible things.
When we realize this, we lose all doubt and fear, for we know that we can create what we want to create; we can get what we want to have, and can become what we want to be. As a first step toward getting rich, you must believe the three fundamental statements given previously in this chapter; and in order to emphasize them. I repeat them here:--
There is a thinking stuff from which all things are made, and which, in its original state, permeates, penetrates, and fills the interspaces of the universe.
A thought, in this substance, Produces the thing that is imaged by the thought.
Man can form things in his thought, and, by impressing his thought upon formless substance, can cause the thing he thinks about to be created.
You must lay aside all other concepts of the universe than this monistic one; and you must dwell upon this until it is fixed in your mind, and has become your habitual thought. Read these creed statements over and over again; fix every word upon your memory, and meditate upon them until you firmly believe what they say. If a doubt comes to you, cast it aside as a sin. Do not listen to arguments against this idea; do not go to churches or lectures where a contrary concept of things is taught or preached. Do not read magazines or books which teach a different idea; if you get mixed up in your faith, all your efforts will be in vain.
Do not ask why these things are true, nor speculate as to how they can be true; simply take them on trust.
The science of getting rich begins with the absolute acceptance of this faith.